नई दिल्ली/इंदौर/भिंड, 5 जुलाई 2025।
देशभर में मेडिकल कॉलेजों को घूस के दम पर फर्जी मान्यता दिलाने के घोटाले में अब सीबीआई ने बड़ा खुलासा करते हुए रावतपुरा सरकार (रविशंकर महाराज), इंडेक्स मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन सुरेश भदौरिया और यूजीसी के पूर्व चेयरमैन प्रो. डीपी सिंह समेत कुल 35 लोगों पर एफआईआर दर्ज की है। मामला सिर्फ एक कॉलेज तक सीमित नहीं, बल्कि देशभर में फैले दर्जनों संस्थानों की मान्यता में भ्रष्टाचार का संजाल सामने आया है।

रावतपुरा मेडिकल कॉलेज से खुला घोटाले का दरवाजा
सीबीआई की जांच की शुरुआत भिंड जिले के लहार स्थित रावतपुरा सरकार मेडिकल कॉलेज से हुई थी, जहां फर्जी दस्तावेज और एनएमसी निरीक्षण में भारी अनियमितताओं के सबूत मिले। जांच आगे बढ़ने पर पता चला कि यह महज एक कॉलेज की बात नहीं है, बल्कि इसके पीछे मेडिकल कॉलेजों का एक व्यापक नेटवर्क और घोटालेबाजों का संगठित गिरोह काम कर रहा है।

सुरेश भदौरिया पर संगीन आरोप, अंडरग्राउंड हुआ आरोपी
इंदौर स्थित इंडेक्स मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन सुरेश भदौरिया को इस घोटाले का मुख्य मास्टरमाइंड बताया गया है। सीबीआई के अनुसार, भदौरिया ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में अपनी गहरी पकड़ बनाकर एनएमसी (नेशनल मेडिकल कमिशन) निरीक्षण से जुड़ी गोपनीय जानकारी हासिल की और मेडिकल कॉलेजों को मान्यता व रिन्यूअल दिलवाने में प्रमुख भूमिका निभाई।
भदौरिया कॉलेजों से 3 से 5 करोड़ रुपये तक की दलाली वसूलता था। बदले में वह फर्जी डॉक्टरों की नियुक्ति, बायोमेट्रिक सिस्टम में फिंगरप्रिंट क्लोनिंग, और अन्य दस्तावेजी हेराफेरी कर संस्थानों को एनएमसी के निरीक्षण में पास करवाता था। एफआईआर में भदौरिया को 25वें नंबर का आरोपी बनाया गया है। 30 जून को केस दर्ज होते ही वह फरार हो गया और वर्तमान में अंडरग्राउंड है।
डीपी सिंह भी आरोपों के घेरे में
सीबीआई की एफआईआर में एक चौंकाने वाला नाम यूजीसी के पूर्व चेयरमैन और DAVV इंदौर के पूर्व कुलपति प्रो. डीपी सिंह का भी है। वर्तमान में वह टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ (TISS) के चांसलर हैं। आरोप है कि उन्होंने रावतपुरा सरकार मेडिकल कॉलेज को एनएमसी की पॉजिटिव रिपोर्ट दिलवाने में सक्रिय भूमिका निभाई। डीपी सिंह पूर्व में बीएचयू और DAVV जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में शीर्ष पदों पर रहे हैं, जिससे इस प्रकरण की गंभीरता और गहराई का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
मंत्रालय के भीतर से होती थी जानकारी की चोरी
एफआईआर में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी चंदन कुमार को भी आरोपी बनाया गया है। आरोप है कि चंदन कुमार ने भदौरिया को एनएमसी निरीक्षण की तारीख, टीम के सदस्य, निरीक्षण बिंदु जैसी संवेदनशील जानकारी समय से पहले लीक की। यह सूचना मिलने के बाद भदौरिया नकली फैकल्टी, फर्जी दस्तावेज, और स्थायी इंफ्रास्ट्रक्चर का भ्रम पैदा करता था।
दलाली के नेटवर्क में शामिल हैं कई राज्यों के कॉलेज
सीबीआई की शुरुआती जांच में सामने आया है कि देशभर के 40 से अधिक मेडिकल कॉलेज इस घोटाले में शामिल हैं। इंडेक्स मेडिकल कॉलेज, मालवांचल यूनिवर्सिटी से संबद्ध है और इसके अंतर्गत मेडिकल, डेंटल, फार्मेसी, पैरामेडिकल और मैनेजमेंट कॉलेज आते हैं। भदौरिया मयंक वेलफेयर सोसायटी के जरिए इन संस्थानों का संचालन करता है।
बड़े पैमाने पर दस्तावेजी हेराफेरी
सीबीआई ने बताया कि निरीक्षण के दौरान कॉलेज में कार्यरत डॉक्टरों की जगह अंशकालिक (temporary) डॉक्टरों को स्थायी बताया गया, उनका फिंगरप्रिंट क्लोन कर बायोमेट्रिक अटेंडेंस में हेराफेरी की गई और वास्तविक उपस्थिति दर्शाई गई। निरीक्षण के समय फोटो, दस्तावेज और डिजिटल उपस्थिति का पूरा नकली तंत्र तैयार किया गया था।
सीबीआई की कार्रवाई से हड़कंप
इस प्रकरण के सामने आने से शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। सीबीआई की माने तो यह महज शुरुआत है, आने वाले समय में और भी नामचीन संस्थानों और रसूखदार लोगों पर गाज गिर सकती है।
जनता और विशेषज्ञ मांग कर रहे हैं कि इस मामले की तेजी से जांच कर दोषियों को कड़ी सजा दी जाए, ताकि देश की स्वास्थ्य शिक्षा प्रणाली को इस तरह की लूट और सौदेबाज़ी से बचाया जा सके।
रावतपुरा सरकार और सुरेश भदौरिया जैसे प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा शिक्षा के पवित्र क्षेत्र को मुनाफे का धंधा बना देना न सिर्फ कानूनी अपराध है बल्कि यह आम जनता के स्वास्थ्य और भविष्य से खिलवाड़ है। अब नजरें सीबीआई पर हैं, जो इस अंधेरे साम्राज्य में रोशनी की उम्मीद बनकर सामने आई है।
ब्यूरो रिपोर्ट रिपब्लिक सागर मीडिया !
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