महोदय! सागर बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज को डॉग सेंचुरी बना दीजिए:प्रोफेसर ने केंद्रीय मंत्री को लिखी चिट्ठी, कहा- इंसानों से ज्यादा यहां कुत्तों की आबादी !
परिचय:
बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज, सागर (मध्य प्रदेश) में कुत्तों की बढ़ती संख्या एक गंभीर समस्या बन चुकी है। यहां तक कि यह समस्या इतनी विकराल हो गई है कि मेडिकल कॉलेज के एक प्रोफेसर ने केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखकर इस पर तत्काल कार्रवाई की मांग की है। प्रोफेसर ने इस पत्र में चुटकी लेते हुए इसे “डॉग सेंचुरी” घोषित करने की बात कही है। इस रिपोर्ट में इस समस्या के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण किया गया है, जिसमें कुत्तों की बढ़ती आबादी, स्थानीय प्रशासन की विफलता, और इसके समाधान के प्रयासों को शामिल किया गया है।

1. समस्या का विस्तार:
कुत्तों की बढ़ती संख्या:
बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज के कैंपस में कुत्तों की संख्या अब इंसानों से अधिक हो चुकी है। यह स्थिति हर दिन भयावह होती जा रही है, क्योंकि कुत्तों की बढ़ती आबादी ने परिसर में रहने और काम करने वाले लोगों के लिए गंभीर खतरे उत्पन्न कर दिए हैं। यहां मरीजों, विद्यार्थियों, और अध्यापकों पर कुत्तों के हमले की घटनाएं लगातार हो रही हैं। हाल ही में एक छात्रा को कुत्ते ने काट लिया था, और यह घटना केवल एक उदाहरण है।
कुत्तों की हिंसक प्रवृत्ति:
कुत्तों की हिंसक प्रवृत्ति ने परिसर के वातावरण को और भी खतरनाक बना दिया है। कई बार कुत्तों ने न केवल छात्रों और कर्मचारियों को डराया, बल्कि उन पर हमला भी किया। यह समस्या इतनी गंभीर हो गई है कि अब कुत्तों के कारण मेडिकल कॉलेज परिसर में बच्चों का बाहर निकलना भी मुश्किल हो गया है।

2. प्रशासन की लापरवाही और प्रतिक्रिया:
नगर निगम का जवाब:
सागर नगर निगम के कमिश्नर राजकुमार खत्री ने इस विषय पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कुत्तों को पकड़ने और उनकी नसबंदी करने का एक निर्धारित प्रक्रिया है। इसके तहत जब कुत्तों को पकड़कर उनकी नसबंदी की जाती है, तो उन्हें उसी स्थान पर छोड़ दिया जाता है, जहां से वे पकड़े गए थे। इसके बावजूद, कुत्तों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। उन्होंने यह भी कहा कि जल्द ही इस मामले में टेंडर जारी कर कुत्तों को पकड़ने का काम तेज किया जाएगा।
नसबंदी का मुद्दा:
हालांकि कुत्तों की नसबंदी की जाती है, लेकिन संख्या में वृद्धि हो रही है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या नसबंदी प्रक्रिया सही तरीके से काम कर रही है। एनिमल एक्सपर्ट अयान सिद्दीकी के अनुसार, यह समस्या इस वजह से उत्पन्न हो रही है कि जिन संस्थाओं को कुत्तों की नसबंदी करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, वे सही तरीके से अपना कार्य नहीं कर रही हैं।

3. कुत्तों के लिए “श्वान अभयारण्य” का सुझाव:
डॉ. सर्वेश जैन का पत्र:
इस समस्या को लेकर बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज के एक प्रोफेसर, डॉ. सर्वेश जैन, जो मेडिकल टीचर एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं, ने केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखकर कॉलेज कैंपस को श्वान अभयारण्य (डॉग सेंचुरी) घोषित करने का सुझाव दिया है। उनका कहना है कि इस परिसर में अब इंसानों की बजाय कुत्तों की संख्या अधिक हो चुकी है, और इसे नजरअंदाज करना असंभव है।
डॉ. जैन ने पत्र में यह भी लिखा कि कई बार नगर निगम और स्थानीय प्रशासन से इस मुद्दे पर शिकायत की जा चुकी है, लेकिन किसी भी स्तर पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। इसलिए, अब इस मामले को जनहित में नहीं, बल्कि श्वानहित में उठाया जा रहा है।
4. कानूनी और नीति संबंधी पहलू:
एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC) नियम:
2001 में भारत सरकार ने “एनिमल बर्थ कंट्रोल” (ABC) नियम बनाए थे, जिसके तहत शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में कुत्तों की नसबंदी की जिम्मेदारी स्थानीय निकायों और एनिमल वेलफेयर बोर्डों की है। 2023 में इस नियम में संशोधन भी किया गया, जिसमें कुत्तों की पकड़, नसबंदी और फिर उन्हें छोड़ने के दिशा-निर्देश जारी किए गए थे। इसके बावजूद, इस नियम का पूरी तरह से पालन नहीं हो रहा है, जिससे कुत्तों की संख्या बढ़ती जा रही है।
कुत्तों की आबादी नियंत्रित करने के उपाय:
अयान सिद्दीकी के अनुसार, नसबंदी एक स्थायी समाधान नहीं है यदि कुत्तों को पकड़ा गया और फिर उसी स्थान पर छोड़ दिया जाता है। इसके लिए जरूरी है कि स्थानीय प्रशासन और नगर निगम कुत्तों के पुनर्वास की योजनाओं को लागू करें, ताकि उनकी संख्या नियंत्रित हो सके।

5. समाधान की दिशा में कदम:
कुत्तों की नसबंदी और पुनर्वास:
समस्या का स्थायी समाधान कुत्तों की नसबंदी के साथ-साथ उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पुनर्वासित करने में निहित है। प्रशासन को इस दिशा में मजबूत कदम उठाने होंगे ताकि कुत्तों की संख्या में स्थिरता लाई जा सके। इसके लिए नगर निगम को और अधिक कार्यकर्ता नियुक्त करने होंगे, जो इस प्रक्रिया को प्रभावी तरीके से लागू कर सकें।
सामुदायिक भागीदारी:
इसके अलावा, कुत्तों से जुड़ी समस्याओं के समाधान में सामुदायिक भागीदारी को भी बढ़ावा देना जरूरी है। नागरिकों को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाए, ताकि कुत्तों के प्रति दया भाव के साथ-साथ सुरक्षा भी सुनिश्चित हो सके।
बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में कुत्तों की बढ़ती संख्या ने एक गंभीर समस्या का रूप ले लिया है। इस मुद्दे को प्रशासन, नागरिक और विशेषज्ञों की साझी पहल के माध्यम से सुलझाया जा सकता है। हालांकि, समाधान में समय लगेगा, लेकिन इसे प्राथमिकता के आधार पर हल करना जरूरी है, ताकि कॉलेज कैंपस में रहने वाले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।