

पूर्व गृहमंत्री एवं खुरई विधायक भूपेन्द्र सिंह ने कहा कि गणेशोत्सव का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। गणेशोत्सव की सार्वजनिक परंपरा की शुरुआत लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में की थी। उनका उद्देश्य अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति को असफल करना और भारतीयों को एकजुट करना था।
उन्होंने कहा कि गणेश जी को विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता कहा गया है। वे केवल बाधाएं दूर करने वाले ही नहीं, बल्कि बुद्धि, विवेक और ज्ञान के देवता भी हैं। गणेश प्रतिमा की स्थापना से समाज में एकता और भाईचारे का संदेश फैलता है।
भूपेन्द्र सिंह ने बताया कि तिलक ने अंग्रेजों की रोक के बावजूद धार्मिक आयोजनों के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा दी। गणेशोत्सव के दौरान आयोजित सभाओं, झांकियों, नाटकों और गीतों के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना और स्वदेशी का संदेश दिया जाता था। उस समय ‘वंदे मातरम्’ और राष्ट्रभक्ति गीतों की गूंज से गणेशोत्सव आजादी के आंदोलन का बड़ा हथियार बन गया।
पूर्व गृहमंत्री एवं खुरई विधायक भूपेन्द्र सिंह ने कहा कि लोकमान्य तिलक ने गणेशोत्सव और शिवाजी महोत्सव के जरिए जन-जन में राजनीतिक जागृति और संगठन शक्ति पैदा की। उनका नारा “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा” आज भी हर भारतीय के दिल में गूंजता है।
भूपेन्द्र सिंह ने आगे कहा कि तिलक ने स्वदेशी आंदोलन को केवल विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे राष्ट्रीय स्वतंत्रता की आधारशिला बना दिया। उन्होंने मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने पर बल दिया, जो आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नई शिक्षा नीति में भी परिलक्षित होता है।
👉 पूर्व गृहमंत्री एवं खुरई विधायक भूपेन्द्र सिंह ने आह्वान किया कि गणेशोत्सव को केवल धार्मिक उत्सव न मानकर हमें इसे सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के रूप में मनाना चाहिए।