परम आत्मा परमात्मा में विलीन…कोई लाखों दक्षिणा दे, पर संत सियाराम बाबा सिर्फ 10 का नोट रखते, बाद में इन्हीं से करोड़ों रुपए जनसेवा में दिए !

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संत सियाराम बाबा, जो नर्मदा नदी के किनारे स्थित खरगोन जिले के तेली भट्यान गांव में जीवनभर तपस्या करने वाले एक प्रसिद्ध तपस्वी संत थे, अब हमारे बीच नहीं रहे। मोक्षदा एकादशी (बुधवार) के दिन, 94 वर्ष की आयु में, वे मोक्ष प्राप्त कर इस संसार से विदा हो गए। कुछ समय से निमोनिया से पीड़ित रहे संत सियाराम बाबा का अंतिम संस्कार उनके गृहक्षेत्र तेली भट्यान में नर्मदा किनारे किया गया, जहां लाखों श्रद्धालुओं ने उनका अंतिम दर्शन किया और श्रद्धांजलि अर्पित की। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बाबा को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके समाधि स्थल को तीर्थ स्थल बनाने की घोषणा की।

बाबा का जन्म और प्रारंभिक जीवन:

संत सियाराम बाबा का जन्म गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में हुआ था। उनका परिवार मुंबई में बस गया था, जहां उनकी प्रारंभिक शिक्षा भी हुई। संत बाबा के परिवार में दो बहनें और एक भाई था। उनके पिता मुंबई में नौकरी करते थे। बाबा की शिक्षा मुंबई में ही पूरी हुई, और उन्होंने मैट्रिक तक की पढ़ाई की।

वैराग्य की ओर कदम:

बाबा की ज़िंदगी में एक मोड़ तब आया जब उनके परिवार के सदस्य, उनके भाई-बहन और पिता की मृत्यु हो गई। इस कठिन समय ने उन्हें वैराग्य की ओर अग्रसर किया। मात्र 17 वर्ष की आयु में, उन्होंने घर छोड़ दिया और आत्मिक उन्नति के लिए भारत भ्रमण पर निकल पड़े। यह यात्रा 5 वर्षों तक चली, और इस दौरान उन्होंने मानसरोवर की भी यात्रा की।

तपस्या की शुरुआत:

1955 में, 25 वर्ष की आयु में, जब बाबा खरगोन जिले के तेली भट्यान गांव पहुंचे, तो वहां मूसलधार बारिश हो रही थी। किसी को भी यह याद नहीं था कि बाबा किस तिथि को यहां पहुंचे, लेकिन उस दिन एकादशी थी। बाबा ने उसी दिन बरगद के पेड़ के नीचे अपना आसन जमाया और एक साधारण कुटिया बनाई। उन्होंने यहां 12 वर्षों तक मौन साधना की और केवल नीम की पत्तियां और बिल्वपत्र ही भोजन के रूप में ग्रहण किए। इस कठोर तपस्या के दौरान उन्होंने पहला शब्द “सियाराम” कहा, और यहीं से वे सियाराम बाबा के नाम से प्रसिद्ध हो गए।

साधना और जीवन का उद्देश्य:

संत सियाराम बाबा ने नर्मदा नदी में प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में स्नान किया और रामचरित मानस का पाठ किया। उनका जीवन केवल साधना और सेवा का प्रतीक था। आश्रम में भक्त बाबा को श्रद्धा भाव से चढ़ावा चढ़ाते थे, लेकिन बाबा ने कभी भी 10 रुपये से ज्यादा नहीं लिया। यह धन उन्होंने समाज सेवा के लिए इस्तेमाल किया और बहुत बड़े दान किए। उन्होंने नागलवाड़ी भीलट मंदिर में 2.57 करोड़ रुपये और 2 लाख रुपये का चांदी का झूला दान किया।

समाज सेवा और योगदान:

बाबा का जीवन समाज सेवा और त्याग का जीवंत उदाहरण था। उन्होंने खरगोन जिले में कई धार्मिक और समाजसेवी कार्य किए। आश्रम के सामने घाट बनाने के लिए उन्होंने एक करोड़ रुपये खर्च किए और भट्याण-ससाबड़ रोड पर यात्री प्रतीक्षालय बनाने के लिए 5 लाख रुपये का योगदान दिया। इसके अलावा, उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए ढाई लाख रुपये दान किए। जामघाट गेट के पास पार्वती मंदिर में उन्होंने 20 लाख रुपये नकद, सोने के आभूषण और चांदी का छत्र दान किया।

बाबा ने सदाव्रत की परंपरा भी चलायी, जिसके तहत उन्होंने नर्मदा परिक्रमा करने वालों को हमेशा अन्न वितरण करने का वचन लिया। जो भक्त आश्रम में रात नहीं ठहरते थे, उन्हें बाबा कच्चा सामान भी प्रदान करते थे।

अंतिम समय और विरासत:

संत सियाराम बाबा के जीवन का उद्देश्य न केवल साधना था, बल्कि उन्होंने अपने कार्यों से यह सिद्ध कर दिया कि धर्म, सेवा और त्याग का रास्ता ही मोक्ष की ओर ले जाता है। उनका जीवन गरीबों और जरूरतमंदों के लिए एक प्रेरणा था। 94 वर्ष की आयु में जब उनका देहांत हुआ, तो उन्होंने अपनी अंतिम यात्रा पर मोक्षदा एकादशी के दिन कदम रखा।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बाबा की समाधि को तीर्थ स्थल बनाने की घोषणा की, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ बाबा की तपस्या और उनके जीवन के कार्यों से प्रेरित हो सकें। संत सियाराम बाबा का योगदान न केवल धार्मिक था, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी उनका प्रभाव अत्यधिक गहरा था।

संत सियाराम बाबा का जीवन एक साधारण व्यक्ति से लेकर एक महान संत बनने तक की प्रेरणादायक यात्रा है। उन्होंने अपने जीवन में सभी प्रकार के भौतिक सुखों को त्याग कर केवल धर्म, साधना और समाज सेवा को अपने जीवन का उद्देश्य बनाया। उनके द्वारा किए गए कार्य और त्याग न केवल उनके अनुयायियों के लिए, बल्कि समग्र समाज के लिए एक अमूल्य धरोहर बन गए हैं। उनके मार्गदर्शन से लाखों लोगों को आत्मिक शांति और समाज सेवा की दिशा मिली।

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